"मृत्यु तो सभी को आती है, परंतु इतिहास उन्हें ही याद रखता है जो स्वाभिमान के साथ जिए और प्राण त्यागे।"
यह प्रेरणादायक वाक्य गोंड रानी दुर्गावती ने अपने आत्मबलिदान के क्षण में अपने सेनापति आधार सिंह से कहा था। यह आज भी साहस और आत्मसम्मान का प्रतीक है।
रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को दुर्गाष्टमी के दिन, कलिंजर के राजा कीरत सिंह के यहाँ हुआ था। उनकी बुद्धिमत्ता, सौंदर्य और वीरता से प्रभावित होकर गोंडवाना साम्राज्य के राजा संग्राम शाह ने अपने पुत्र दलपति शाह के लिए विवाह प्रस्ताव भेजा। यह विवाह 1542 में संपन्न हुआ।
विवाह के कुछ वर्षों बाद, 1548 में दलपति शाह का निधन हो गया। इसके बाद रानी दुर्गावती ने अपने मात्र पांच वर्ष के पुत्र वीर नारायण के नाम पर गोंडवाना की शासन व्यवस्था संभाली। उन्होंने न केवल राज्य को संभाला, बल्कि उसे हर क्षेत्र में समृद्धि की ओर ले गईं। उनका शासनकाल गोंडवाना साम्राज्य का स्वर्ण युग माना जाता है।
रानी दुर्गावती महिलाओं के सशक्तिकरण की प्रबल समर्थक थीं। उन्होंने अपनी सेना में एक महिला दस्ता गठित किया जिसमें युवतियों को युद्धकला का प्रशिक्षण देकर शामिल किया गया। इस महिला सेना का नेतृत्व उनकी बहन कमलावती और पुरागढ़ की राजकुमारी करती थीं। रानी का विश्वास था कि यदि महिला सशक्त होगी तो समाज और राष्ट्र स्वतः सशक्त होंगे।
अपने शासनकाल में उन्होंने कुल 16 युद्धों का नेतृत्व किया। अस्सी हजार गांवों और 57 परगनों से युक्त राज्य को कुशलता से संचालित करते हुए वे एक राजनेता, रणनीतिकार, प्रजापालक और वीरांगना के रूप में स्थापित हुईं।
16वीं शताब्दी के मध्य में मुगल सम्राट अकबर ने अपने सेनापति आसफ खां को गोंडवाना पर चढ़ाई करने भेजा। रानी ने पहले इस हमले को पराजित किया, परंतु अंततः एक भीषण युद्ध में वे गंभीर रूप से घायल हो गईं। जब उन्हें लगा कि वे अब जीवित नहीं बच पाएंगी और मुगलों के हाथों गिरफ़्तार हो सकती हैं, तब उन्होंने अपने एक सैनिक को आदेश दिया कि वह उन्हें मार डाले। जब सैनिक ने ऐसा करने से मना कर दिया, तब रानी ने स्वयं अपनी तलवार से अपने सीने में वार कर वीरगति प्राप्त की। यह घटना 24 जून 1564 को हुई।
उनकी शहादत के स्थान पर, जबलपुर के पास नरिया नाला क्षेत्र में एक स्मारक बनाया गया है। हर वर्ष 24 जून को यहाँ ‘बलिदान दिवस’ मनाया जाता है।
भारत सरकार ने 24 जून 1988 को रानी दुर्गावती की स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया। जबलपुर में स्थित रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय भी उनकी स्मृति को जीवित रखे हुए है।
रानी दुर्गावती केवल एक योद्धा नहीं थीं, वे नेतृत्व, नारीशक्ति, आत्मसम्मान और राष्ट्रभक्ति की जीवंत प्रतीक थीं। उनका जीवन आज भी सभी को प्रेरणा देता है कि स्वाभिमान और न्याय के लिए किसी भी सीमा तक जाया जा सकता है।